शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

बाल गीत ...शिव जी....डा श्याम गुप्त...

नाग गले में लिपटे रहते ,
चन्दा माथे पर जिनके                     
जटाजूट में गंगा बहती,
है त्रिशूल कर में उनके ||

नेत्र तीसरा है मस्तक पर,
नीला कंठ सुहाया है |
कटि पर हैं  मृगछाला बांधे,
तन पर भस्म रमाया है ||

बच्चो ! ये भोले शंकर हैं,   
शिव-शंभू भी कहलाते |
देवों के भी देव हैं, इससे-
महादेव बोले जाते ||

अर्थ ये लिपटे नागों का है ,
दुष्टों को बस में करते |
फिर भी शीतल रहे ह्रदय, वे-
चन्दा माथे पर धरते  ||

जग के कष्टों का विष पीकर,
नीलकंठ बन जाते हैं |
सत तम रज का त्रिशूल थामे,
प्रेम की गंगा बहाते हैं ||